मेले में भाग लेने के लिए श्रद्धालु सुबह से ही मंदिर परिसर में जुटने लगे थे। लंबी कतारों में श्रद्धालु पैदल, ऊंटगाड़ियों, ट्रैक्टरों, मोटरसाइकिलों, जीपों और अन्य वाहनों से मंदिर पहुंचे।
खास बात यह रही कि इस धार्मिक आयोजन में महिलाओं और बच्चों की भागीदारी विशेष रूप से अधिक रही। श्रद्धालुओं ने विशेष श्रद्धा से दूध, घी, पतासे, नमक, झाड़ू, चुनरी और चूड़ियां आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाई।
मंदिर परिसर में मेले के अवसर पर सजाई गई सजीव रंग-बिरंगी दुकानों ने पूरे वातावरण को धार्मिक उत्सव में बदल दिया। महिलाओं ने मेले में मनिहारी का सामान और बर्तन आदि खरीदे, जबकि बच्चों ने खिलौनों की खरीददारी कर मेले का भरपूर आनंद लिया।
यह मेला हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आयोजित होता है, लेकिन बैशाख शुक्ल चतुर्थी के अवसर पर इसका विशेष महत्व माना जाता है।
हरियाणा और राजस्थान की सीमावर्ती क्षेत्रों के भक्त इस दिन बड़ी संख्या में सती दादी के दर्शन करने और मन्नतें मांगने के लिए यहां पहुंचते हैं।
इस धार्मिक आयोजन की व्यवस्था ग्राम पंचायत और श्री महारानी सेवा समिति कुम्हारिया द्वारा की गई।
समिति ने मंदिर परिसर में पेयजल, साफ-सफाई और अन्य जरूरी सुविधाओं का बेहतर प्रबंध किया। मंदिर परिसर में विशेष रूप से हवन-यज्ञ का आयोजन भी किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और धार्मिक अनुष्ठानों में आस्था प्रकट की।
मंदिर के पुजारी रघुवीर शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि सतीदादी के इस मंदिर में सच्चे मन से प्रसाद चढ़ाने और धोक लगाने पर मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं।
उन्होंने बताया कि यहां पर चर्म रोगों से मुक्ति मिलने की भी जनश्रुति है, जिसके चलते दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन करने आते हैं।
मेले की रंगत के बीच मंदिर में भक्ति गीतों की स्वर लहरियों ने वातावरण को और अधिक आध्यात्मिक बना दिया। श्रद्धालु पूरे दिन मंदिर परिसर में पूजा-पाठ, हवन और भजन-कीर्तन में लीन रहे.
कुम्हारिया का यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बना, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है।
इस आयोजन ने साबित किया कि परंपराएं आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं और धर्म के साथ-साथ मेल-मिलाप और सांझी संस्कृति को भी प्रोत्साहन देती हैं।
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