हरियाणा के दादरी जिले के नौसवां गांव के रहने वाले 52 वर्षीय मुख्तानाथ का असली नाम मुकेश कुमार है। इनके शव को पोस्टमॉर्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है। पुलिस का कहना है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत की सही वजह पता चलेगी।
लोगों का कहना है कि बाबा शुरू से धार्मिक रहे, ट्रक चलाते थे: गांव नौसवां के सरपंच नसीब ने बताया है कि वह मुकेश कुमार के परिवार में से ही हैं।
उन्होंने कहा कि मुकेश कुमार शुरुआत से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। हालांकि,
वह
पहले पूजा-पाठ करने के साथ अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए ट्रक चलाते थे।
उनके पास खुद का ट्रक था। बाद में मुकेश ने ट्रक चलाना छोड़ दिया। फिर वह खेती करने
लगे थे।
पिता आर्मी में थे, बीमारी से मौत हुई: नसीब ने बताया कि मुकेश के पिता कपूर सिंह आर्मी में थे। जब वह रिटायर्ड हुए तो कुछ समय बाद ही वह बीमार रहने लगे थे।
इससे उनकी मौत हो गई थी। इससे पूरे
परिवार की जिम्मेदारी मुकेश पर ही आ गई थी।
मुकेश से अनबन पर पत्नी मायके गई: नसीब कुमार ने बताया- यह बात करीब 5-6 साल पहले की है।
मुकेश की अपनी पत्नी
के साथ किसी बात को लेकर अनबन हो गई थी। इससे नाराज होकर पत्नी मायके चली गई। पत्नी
बच्चों को भी साथ ले गई थी। इससे मुकेश कुमार परेशान रहने लगे।
पत्नी गई तो मुकेश ने घर छोड़ा: सरपंच बताते हैं कि पत्नी के जाने के बाद घर में केवल मां बची थी।
इससे परेशान होकर मुकेश ने घर छोड़ दिया। शुरुआत में किसी को पता नहीं चला कि मुकेश कहां गए। उनके जाने की खबर सुनकर उनकी पत्नी ससुराल लौट आई।
इसके बाद जब मुकेश की खोज शुरू हुई तो पता चला कि
वह तो भक्ति में लीन हो गए हैं।
खेत में झोपड़ी बनाकर रहने लगे: नसीब ने बताया कि मुकेश ने अपने ही खेत में एक झोपड़ी बनाई थी। वह 24 घंटे वहीं रहने लगे और भगवान का भजन करने लगे।
जब उनके बच्चे और पत्नी उन्हें लेने के लिए गए,
तब
भी वह घर नहीं लौटे। पत्नी ने उन्हें मनाने की काफी कोशिश की थी।
झज्जर जिले में की पहली तपस्या: सरपंच का कहना है कि मुकेश के पास उनके घरवाले रोज पहुंचते थे, इसलिए वह गांव के साथ लगते झज्जर जिले के गांव खेड़ा थूरा की बणी में चले गए। वहां रहकर तपस्या करने लगे।
2 साल पहले यहीं पर उन्होंने 41 दिन की खड़ी तपस्या की थी। साथ में मौन व्रत भी रखा था। यहीं से लोग इन्हें मुख्तानाथ नाम से जानने लगे। तपस्या पूरी होने के बाद वह कुछ दिन हांसी के एक मंदिर में रहे।
वहां से दादरी के अटेला नया आ गए, जहां वह अब तक रह रहे थे।
1 मई से शुरू की थी तपस्या: अटेला नया के
ग्रामीणों के मुताबिक, महंत ने जन कल्याण के लिए मंडालिया धाम में 1 मई
को खड़े होकर तपस्या शुरू की थी, जो 10 जून तक चलनी
थी। साधु ने 41 दिन की तपस्या का प्रण लिया था। इसकी शुरुआत
के लिए छोटा सा कार्यक्रम भी किया गया था।
मंदिर के कमरे में की गई तपस्या : ग्रामीणों के अनुसार, मंडालिया धाम के एक कमरे में महंत मुख्तानाथ की तपस्या की व्यवस्था की गई थी। वह एक ड्रम के सहारे दिन-रात खड़े होकर तपस्या करते थे। दिन के समय मंदिर परिसर में ही थोड़ा टहलते भी थे।
बिना अन्न के चल रही थी तपस्या: लोगों ने बताया
है कि मुख्तानाथ ने तपस्या के दौरान किसी तरह का अन्न ग्रहण न करने का व्रत लिया
था। आहार के रूप में महंत केवल गाय का दूध, चाय और पानी
पीते थे।
मंगलवार को बेहोश होकर गिरे, मौत
हुई: लोगों का कहना है कि मंगलवार को मुख्तानाथ की तपस्या का 21वां
दिन था। दोपहर के समय वह ड्रम के सहारे खड़े होकर तपस्या कर रहे थे, कि
अचानक बेहोश होकर गिर पड़े। उन्हें गिरता देख फौरन लोगों ने उन्हें संभाला और उनके
मुंह पर पानी के छींटे मारे, लेकिन उन्होंने आंखें नहीं खोलीं।
अस्पताल में महंत को मृत घोषित किया: इसके बाद लोगों ने डायल-112 पर कॉल किया। थोड़ी देर में पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने गाड़ी से महंत को सिविल अस्पताल पहुंचाया। यहां डॉक्टरों ने महंत को मृत बता दिया। बुधवार सुबह पुलिस ने सिविल अस्पताल में ही शव का पोस्टमॉर्टम करवाया और परिजनों को सौंप दिया।
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