हिंदी : अलंकार की परिभाषा और महत्त्व



हिंदी :  अलंकार शब्द' अलम्' और 'कार' इन दो शब्दों के योग से बना है। इनके आधार पर अलंकार की परिभाषा इस प्रकार दी गई है- 'अलंकरोतीति अलंकार' : अर्थात् जो सज्जित करे वह अलंकार है।


 आचार्य भामह के अनुसार शब्द अर्थ वैचित्र्य को अलंकार कहते हैं। दण्डी ने अलंकार की परिभाषा देते हुए लिखा है-"काव्य शोभा करान् धर्मान् लंकारान प्रचक्षते"।


 अर्थात् काव्य शोभा को बढ़ाने वाले धर्म को अलंकार कहा जाता है। इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अलंकार काव्य के अनिवार्य धर्म हैं, ये काव्य की शोभा को उत्कर्ष प्रदान करते हैं।


महत्त्व - अलंकारवादी आचार्य अलंकार को काव्य की आत्मा मानते हैं। भामह' ने काव्य का प्राण अलंकार हीं माना है और अलंकार का प्राण वक्रोक्ति को। 


जयदेव तो अलंकार के बिना काव्य का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं करते। उन्होंने लिखा है कि जो शब्द अर्थ वाले अलंकार-विहीन काव्य को ही काव्य मानते हैं, वे यह क्यों नहीं मानते कि आग ठण्डी होती है।


 आचार्य वेदव्यास ने तो यहाँ तक लिखा है कि 'अर्थालंकार रहिता विधवेव सरस्वती' अर्थात् सरस्वती, अलंकारों के बिना विधवा स्त्री के समान है।


 रसवादी आचार्य अलंकार को काव्य का अनिवार्य धर्म नहीं मानते, फिर भी इतना अवश्य स्वीकार करते हैं कि वे रसानुभूति में सहायक होते हैं। संक्षेप में अलंकार काव्य कामिनी के बाहरी शोभाकारक धर्म हैं। वे उसके लिए आवश्यक तो हैं लेकिन अनिवार्य नहीं।

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