हिंदी: टालकॉट पार्सन्स का यह मानना था कि विविध सामाजिक वैज्ञानिकों के योगदान एक ही दिशा में आगे बढ़ते हैं जिसे सामाजिक कार्य या एकल धारणा कहते हैं।
लेकिन जिस प्रतिमानित चर है। टालकॉट पार्सन्स ने क्लासिकी युग के विचारकों जैसे सिग्मण्ड फ्रायड, अल्फ्रेड मार्शल, परेटो और मैक्स वेबर जैसे विचारकों की अवधारणाओं का अध्ययन करके उसे समेकित कर अपने सिद्धांत को प्रस्तुत किया।
वास्तव में पार्सन्स जानना चाहते थे कि सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य किस प्रकार व्यक्तित्व व्यवस्था में समाहित हो जाते हैं।
उन्होंने अपनी पुस्तक व सोशल सिस्टम (1951) में लिखा कि क्रिया के तीन अनिवार्य की दृषि घटक होते हैं व्यक्तित्व व्यवस्था', 'सामाजिक व्यवस्था' और 'सांस्कृतिक व्यवस्था'। दृष्टि। टालकॉट पार्सन्स के अनुसार यद्यपि ये क्रिया के तीन भाग अवश्य हैं, लेकिन इनमें से कोई भी भाग किसी से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है।
टालकॉट पार्सन्स ने रॉबर्ट बेल, एडवर्ड शिल्स के साथ एक अन्य रचना 'वर्किंग पेपर्स इन द थ्योरी ऑफ एक्शन (1953) में एगिल रूपावली को निर्मित किया। एगिल में 'ए' का अर्थ अनुकूलन, 'जी' का तात्पर्य लक्ष्य प्राप्ति, 'आई' का अर्थ एकीकरण और 'एल का अर्थ अप्रकट या अव्यक्तता होता है।
इस तरह पार्सन्स द्वारा जोड़ना विकसित एगिल रूपावली ने उसे पहले से अधिक आदर दिलाया है क्योंकि इससे वह काफी धारणा के लिए टालकॉट पार्सन्स काफी प्रसिद्ध हैं, वे अवधारणाएँ एगिल (AGIL) और उच्च स्तर पर सामाजिक सिद्धांतों के सूत्रीकरण की ओर बढ़े।
टालकॉट पार्सन्स की एक अन्य महत्त्वपूर्ण रचना 'प्रतिमान तर योजना (Pattern Variable Scheme) है जिसमें इन्होंने कहा है कि व्यक्ति या समुदाय दो विपरीत श्रेणियों के विकल्प होते हैं जिसमें एक परंपरागत सामाजिक व्यवस्था की विशेषता होती है तथा ये प्रतिमानित विकल्प सदैव युग्म के रूप में होते हैं, जैसे रागात्मक बनाम रागात्मक तटस्थता, केंद्रित बनाम समूह केंद्रित, विशेषता बनाम सार्वभौमिकता, गुण बनाम उपलब्धि अथवा आरोपित बनाम अर्जित तथा व्यापकता बनाम विशिष्टता। इन प्रतिमानित विकल्पों की विस्तृत चर्चा पार्सन्स ने अपनी पुस्तक 'व सोशल सिस्टम' में की है। सामान्य रूप से पार्सन्स के सिद्धांतों को प्रकार्यवाद के सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। यद्यपि इनके सिद्धांतों की आलोचना भी की गई है तथा कई विद्वानों ने विचार व्यक्त किए है कि पार्सन्स की रचनाएँ पदने में काफी सैद्धांतिक है और कई बार ये महासिद्धांत के रूप में दिखती है, क्योंकि इन सिद्धांतों का आनुभविक वास्तविकता से कोई विशेष संबंध नहीं है। पार्सन्स ने भी इस बात को जूद स्वीकार किया है कि उनकी रचनाओं का संबंध सिर्फ सैद्धांतिक योजनाएँ प्रदान करने के कार्य से ही जुड़ा रहा। फिर भी एक विषय को आगे बढ़ाने के लिए सैद्धांतिक विरूपीकरण और वास्तविक सूचनाओं के बीच संतुलन स्थापित करना जरूरी था।
एक टिप्पणी भेजें