हिंदी : कॉलरिज कोरे यथार्थ के अनुकरण को यांत्रिक अनुकरण तथा प्रकृति की चोरी कहता है। वह चाहता है कि कवि ऐसे अनुकरण की कल्पना न करें। कलाकार तो कल्पना द्वारा जीवन का सजीव रूपान्तरण और सृजन करता है।
कल्पना पदार्थ और मन के बीच के अन्तर को मिटाती है, वहीं आन्तरिक और बाह्य को स्मरण करती है। उसी के द्वारा वह प्रकृति बाह्य रूप को अपने मानस में गढ़ लेता है।
कोई भी कलाकार प्रकृति के विभिन्न खण्डों को अलग-अलग प्रस्तुत करता है, तो वह प्रकृति के अंग-भंग का दोषी होगा। उसकी कल्पना की सिद्धि प्रकृति को एक इकाई के रूप में प्रस्तुत करने में है।
इस विधि से ही प्रकृति की आत्मा-उसका विशिष्ट व्यक्तित्व और सौन्दर्य प्रत्यक्ष हो सकता है, इसके अभाव में प्रकृति का अनुकरण जड़, मृत और निष्क्रिय रहेगा।
इस प्रकार वह केवल ललित, कल्पना (फैन्सी) से उत्पन्न पदार्थों को प्रस्तुत कर सकता है। कॉलरिज की दृष्टि में कल्पना अनुकरण न होकर वस्तु का पुनर्निर्माण है, जो मृत वस्तुओं में प्राण प्रतिष्ठित कर देती है, जिस प्रकार निर्जीव मोम की पुतलियाँ हमें प्रभावित नहीं कर साकतों, उसी प्रकार प्रकृति की अनुकृति होते हुये भी वे तव तक सहृदय को स्पर्श नहीं कर सकते, जब तक कल्पना उनमें प्राणों का संचार नहीं कर देती।
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