Hindi: किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के व्यवहार को इच्छानुसार प्रमावित करने की योग्यता को सत्ता कहते है। सत्ता सदैव दो के बीच सामाजिक संबंधों को अनिवार्य बनाती है।
यह कहना कि किसी व्यक्ति के पास सत्ता है, निरर्थक यह न कहा जाए कि वह सत्ता किस पर प्रयोग की जाती है। सत्ता रखने वाला एक व्यक्ति या व्यक्तियों का एक समूह, दूसरों से वह करवा सकता है, जो वह करवाना चाहता है।
यदि वे जिन पर सत्ता प्रयोग की जा रही है, आज्ञा पालन से इंकार अथवा विरोध करते हैं तो किसी न किसी प्रकार से दडित किया जाता है। सत्ता सदैव संबंधों में विषमता पैदा करती हैं।
जिन लोगों की सीमित संसाधनों तक अधिक पहुँच है जैसे वित्त पर नियंत्रण, उत्पादन अथवा वितरण के साधनों का स्वामित्व अथवा नियंत्रण वे उनसे अधिक सत्ताशाली होते हैं जिणके पास साधन नहीं है अथवा जिन्हें इनके नियंत्रण का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।
अपनी इच्छा को थोपने के लिए दंड विधि का प्रयोग सत्ता का एक महत्त्वपूर्ण अंग है और इसी आधार पर प्रभाव से भिन्न है।
कोसर ने सत्ता की संकल्पनात्मकता के लिए दो परंपराओं (प्रथाओं) को रेखांकित किया जिन्हें सामाजिक लेखों में पहचाना जा सकता है। यहाँ दो प्रश्न प्रासांगिक हो जाते हैं.
लोगों के पास सता क्यों होती है जबकि दूसरों के पास यह नहीं होती। मजबूत व्यक्ति के पास सता होती है और वह आदेश देता है जबकि कमजोर लोगों के पास सत्ता नहीं होती और आज्ञा का पालन करते हैं।
लेकिन यह हमेशा सत्य नहीं होता। यह कहा जा सकता हैकि संसाधनों में असमानता से सत्ता में असमानता आती है। अतः यदि एक निश्चित क्षेत्र में संसाधन समान रूप से संतुलित हो तो दो के बीच कोई सत्ता संबंध नहीं होगा।
इन दो का उत्तर काफी जटिल है। यह जानना आवश्यक है कि किस आधार पर किसी के पास सता अपने आप में ऐसी है कि एक व्यक्ति वैसा ही करता है जैसा दूसरा चाहता है।
आज्ञा पालन दर पर आधारि हो सकती है अथवा लाम की तार्किक गणना कर अथवा अन्य ढंग से कर सकने की सर्ज अभाव के कारण, निष्व या किसी अन्य कारण से।
एक टिप्पणी भेजें