कुम्हारिया में इंसानियत की मिसाल: बिना सगे भाई के भी भरा भात, खचवाना गांव बना समाज का आईना, हरियाणा राजस्थान में चर्चित भात



हमारे समाज में परिवार और रिश्तों की अहमियत सबसे ऊपर मानी जाती है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसके पास एक घर हो, एक परिवार हो और वो अपने सुख-दुख बांटने के लिए किसी का कंधा हो। लेकिन समाज में कुछ जातियां ऐसी भी होती हैं, जैसे – भोपा, भाट, नट, इत्यादि – जिनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता। ये लोग एक गांव से दूसरे गांव जाकर जीवन यापन करते हैं।


इन्हीं में से एक परिवार इन दिनों हरियाणा के सिरसा जिले के कुम्हारिया गांव में रह रहा है। यह परिवार भोपा जाति से ताल्लुक रखता है। उनके बेटे की शादी का आयोजन इसी गांव में रखा गया। शादी के दौरान एक रस्म होती है – भात की रस्म। यह रस्म खास तौर पर लड़की की मां की तरफ से यानी ननिहाल से निभाई जाती है। परंतु इस परिवार की बहन का न तो कोई सगा भाई है, न कोई मामा-नाना – इस कारण वह भावुक और चिंतित थी कि उसकी बेटी की शादी में यह रस्म अधूरी रह जाएगी।


जब खून के रिश्ते न हों, तब बनते हैं दिल से जुड़े रिश्ते

इस बहन ने हार नहीं मानी। उसने उन गांवों में जहां-जहां वह पहले रह चुकी थी, वहां के कुछ जान-पहचान के लोगों को तिलक निकाल कर भात भरने का न्योता दिया। 




भावना और रिश्ते की इस पुकार को ठुकराना किसी ने जरूरी नहीं समझा।


तीन अलग-अलग गांवों से आए लोग न केवल इस शादी में शामिल हुए, बल्कि पूरे रीति-रिवाज और सामाजिक मर्यादा के साथ भात भरने की रस्म भी निभाई। लेकिन जो भात सबसे ज्यादा चर्चा में रहा, वो था – राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की भादरा तहसील के खचवाना गांव से आया भात।


खचवाना गांव बना मानवता का प्रतीक

लालचंद महायच ने इस बहन के लिए जिस तरह से भात भरा, उसने पूरे क्षेत्र में एक मिसाल कायम की। खचवाना से लगभग 20 से ज्यादा लोग – पुरुष, महिलाएं और बच्चे – इस शादी में शामिल होने पहुंचे। सभी ने पारंपरिक तरीके से भात की रस्म निभाई और बहन के परिवार को पूरा मान-सम्मान दिया।


भात में शामिल थीं कई चीजें:


₹5100 का मायरा (नगद भेंट)


₹5100 का बान (साथ आए लोगों का समूह भेंट करता है)


एक चांदी का टीका


एक कोका (नाक की बाली)


एक जोड़ी बिछिया (पैर की अंगूठी)


साथ ही बहन की सास, ननद, जेठानी, देवरानी के लिए वस्त्र व कंबल


बच्चों और पुरुषों के लिए पैंट-शर्ट व अन्य उपहार


भात की यह रस्म समाज के रीति-रिवाजों के अनुसार विधिपूर्वक अदा की गई। सबसे बड़ी बात यह रही कि इस सारे आयोजन में केवल रस्में नहीं निभाई गईं, बल्कि दिल से रिश्ता निभाया गया।


गांववासियों ने दिया खुले दिल से आशीर्वाद

कुम्हारिया गांव, खचवाना गांव और अन्य दो गांवों से आए सभी लोगों ने इस अनूठे भात की सराहना की। शादी समारोह का माहौल देखते ही बनता था – किसी ने नहीं सोचा था कि बिना सगे भाई के भी कोई बहन इतनी सम्मान के साथ भात पा सकती है।


गांव के बुजुर्गों ने भी कहा –

"अपने सगे भाई तो सभी भात भरते हैं, पर असली पुण्य तो तब मिलता है जब किसी बहन के लिए कोई गैर भात भरता है। वो खुशी, वो मुस्कान जो उस बहन के चेहरे पर थी, वही असली रिश्ता है।"


समाज को नई दिशा देता एक भावनात्मक संदेश

आज के दौर में जब रिश्ते केवल मतलब के हो चले हैं, यह घटना एक आदर्श और प्रेरणादायक उदाहरण बनकर सामने आई है। यह बताता है कि रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं।


अगर हमें कभी जीवन में ऐसा मौका मिले, जब हम किसी दुखी बहन की शादी में उसकी भात की रस्म निभा सकें, तो इसे कभी न टालें। किसी के जीवन में खुशी देना – वो भी सम्मान और अपनत्व के साथ – सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ा पुण्य है।



1 تعليقات

  1. जब जब समाज में ऐसा कोई वाक्य सुनने में आता है तब तब ये खुशी मिलती है की आज भी हम अपने बुजुर्गों के दिए हुए पुराने संस्कार भूले नहीं है आज भी हम अपनी जमीन से उसी तरह जुड़े खचवाना गांव आज पूरे समाज के सामने अच्छा उदाहरण रखा है और तारीफ के काबिल है

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