Hindi Sahitya: मुक्तक काव्य को प्राचीन भारतीय संस्कृत साहित्य में कुछ वर्गों में बांटा गया हैं। मुक्तक के दो वर्ग स्वीकार किये गये है।
(1) एकछन्द वाला स्फुट मुक्तक- जिस मुक्तक में एक छन्द में समस्त भाव-विचार का समेट कर कवि अपनी कलात्मक कुशलता के साथ प्रस्तुत कर दे, वह एक छन्दः स्फुट मुक्तक हैं ।
कवि का गागर में सागर भरने का कौशल इसी प्रकार के मुक्तक में दिखता है। हिन्दी काव्य के अन्तर्गत सतसई, शतक, पचौसा, दशक, अष्टक, पंचक के रूप में जो रचनाएँ मध्यकाल में सामने आई, वे स्फुट मुक्तक ही हैं।
उनका प्रत्येक छन्द अपने आप पूर्ण, स्वतन्त्र और निरपेक्ष है। 'बिहारी सतसई' का प्रत्येक दोहा ना अर्थ और भाव व्यक्त करता है है और रसोद्रेक करने में समर्थ है।
(2) संयुक्त मुक्तक संस्कृत आचार्यों ने ऐसे मुक्तकों को संयुक्त मुक्तक कहा है जो एकाधिक शब्दों में रचे गये। यद्यपि उनमें प्रबन्ध की भाँति कोई कथात्मक तारतम्य तो नहीं है, किन्तु किसी क्षणिक अनुभूति, भाव या विचार को कवि एक छन्द में नहीं बांधकर अधिक छन्दों का सहारा लेता है।
इसीलिए ऐसे मुक्तकों को संयुक्त कहा जाता एक से अधिक छन्द मिलाकर ही एक अनुभूति या भाव को व्यक्त करने में समर्थ है। अतः ऐसे मुक्तक संयुक्त मुक्तक होते हैं।
अग्नि पुराण और उसके पश्चात् अनेक ग्रन्थों में संयुक्त मुक्तकों की विशेषताओं ,भेदों का उल्लेख किया गया है।
यहाँ एक स्पष्टीकरण अनावश्यक प्रतीत होता है कि एकाधिक छन्दों में विरचित काव्य-रचना होने पर भी परस्पर, सावलम्ब स्थिति अनिवार्य परस्पर निरपेक्ष श्लोक-समूह को आचार्य विश्वनाथ ने कोष माना है और सजातीय छंदों के संग्रह को 'व्रज्या' कहा है।
हिन्दी साहित्य में मुक्तकों के अनेक संकलन प्रसिद्ध हैं ।
सतसई, हजारा शतक, अष्टक आदि में संयुक्त मुक्तक नहीं हैं। उनका प्रत्येक छन्द सोनिया एक छन्द वाले मुक्तक की श्रेणी में आता है।
संस्कृत काव्य शास्त्र में संयुक्त मुक्तक नाम से जिस काव्य-रूप का विवेचन मिलता कोसमें छन्दों की सापेक्ष स्थिति आनेवार्य मानी गयी है।
परन्तु इनमें किसी प्रकार का विन्यास, प्रसंग-विन्यास, वर्णन-विन्यास अपेक्षित नहीं है। वे केवल दूर तक चलने क्षणिक अनुभूति या भाव या विचारधारा की अभिव्यक्ति के माध्यम मात्र हैं।
(क) युग्पक जो मुक्तक दो छन्दों में अपना भाव अभिव्यक्त करे।
(ग) कलापक-चार छन्दों में अर्थ व्यक्त करने वाला मुक्तक ।
(घ ) कुलक-जिस मुक्तक में पाँच छन्द हों।
(ड़) करहाटक-छः छन्दों में पूर्णता प्राप्त करने वाला मुक्तक।
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