Hindi Sahitya : आधुनिकता' का अर्थ और अवधारणा को स्पष्ट करें ।



Hindi Sahitya :  आधुनिकता'
   का  आशय देश-काल के वोध से लिया जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आधुनिकता वस्तुतः मानवीय प्रगति की सूचना देती है तथा नये परिवेश को स्वीकार करके चलती है। 

आधुनिकता की व्याख्या में कुछ विद्वान तो पुरातन से बिल्कुल हटेकर आधुनिकता की बात करते हैं तथा कहते हैं कि आधुनिकता अपने में अलग महत्त्व रखती है। 


उसकी पुरातन निरपेक्ष व्याख्या करना ही उसे सही रूप में समझना है। इसके विपरीत दूसरे वे लोग हैं जो आधुनिकता की व्याख्या अतीत की समकक्षता और सापेक्षता में करना ही उचित समझते हैं।


अतीत की सापेक्षता में आधुनिकता को देखने से उसकी मौलिकताएँ कभी मिट नहीं सकती हैं। 


अतः आधुनिकता का वास्तविक अर्थ विगत सांस्कृतिक मूल्यों को अपने अन्दर समेटकर मानव की वर्तमान स्थिति और उसके भविष्य विषयक दायित्व की सक्रियता और चेतनता को स्वीकार करना है।



 आज के संघर्षगामी जीवन में मनुष्य की संवेदना कुछ दूसरे और नए ढंग से अनुभव कर रही है। अनुभूति और संवदेना का यह नयापन आधुनिकता का ही एक अंग है।


कोई ऐसा युग नहीं रहा जो अपने समय में आधुनिक न कहलाया हो; किन्तु यह सही है कि अपनी आधुनिकता के प्रति कोई भी युग इतना सचेत नहीं रहा, जितना आज का युग। 


आधुनिकता को अधिक व्याख्या के स्तर पर खड़ा करते समय यह तथ्य भी विस्मरणीय नहीं है कि आधुनिकता का मूल्य ऐतिहासिक दृष्टिकोण के साथ ही है।


 पुरातन युग और ऐतिहासिक बोध को मानसिकता के स्तर पर भोगकर ही आधुनिकता को प्राप्त किया जा सकता है। जो आधुनिकता ऐतिहासिक बोध के अभाव में अवतरित होती है.


 वह संकीर्ण आधुनिकता है। इस श्रेणी की आधुनिकता परम्परा से चिढ़ती है तथा सतही अभिव्यक्ति की ओर उन्मुख रहती है।


आधुनिकता ऐतिहासिक बोध के परिप्रेक्ष्य में उन्नति की ओर उन्मुख रहती है तथा युगबोध को स्वीकार करती हुई मानव को अधिक दायित्वशील और चेतन बनाती है। 


विज्ञान ने अपने परीक्षणों व तों के आधार पर यह बताने का प्रयत्न किया है कि भौतिक जगत का नियन्ता कोई अलौकिक पुरुष नहीं है।


विज्ञान ने मानव के जीवन दृष्टिकोण को बदल दिया है। अब विश्वास के स्थान पर परीक्षण, श्रद्धा के स्थान पर तर्क और आस्था के स्थान पर विश्लेषण को महत्त्व दिया जाने लगा है। 


सारे मूल्यों का अवमूल्यन होने लगा, एक विराट अराजकता, एक घातक अन्धकारमय शून्य। मूल्यों के इस विघटन ने कैंसर की तरह मानवीयता को अन्दर से खोखला बनाना शुरू कर दिया। 


प्रकृति पर ज्यों-ज्यों मानव को विजय प्राप्त होती गई, मनुष्य त्यों-त्यों अपने को हारता गया। 


औद्योगिक पूँजीवाद के कारण भी एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई। स्पष्ट है कि जब इन परिस्थितियों में चारों ओर विघटन, वैषम्य और अराजकता हो तो साहित्य भटकाव, कड़वाहट और विद्रोह के दौरान, अपनी स्थिति कैसे सुरक्षित रख सकता है।



 यही कारण है कि संवेदनशील कवि आधुनिक युग की इस विषमता को देखता हुआ नवीन परिप्रेक्ष्य में आधुनिकता बोध को अपनाकर चल रहा है।


डॉ. जगदीश गुप्त ने आधुनिकता का मूलाधार मानवतावादी दृष्टि को बतलायी है। आधुनिकता मानव मुक्ति की बात करती है।


 वह जिस मुक्ति की बात करती है, वह विचारों की मुक्ति है, अभिव्यंजना की स्वतंत्रता है। आज आधुनिकता का अर्थ बाहरो रूपाकार तक ही सीमित कर दिया गया है।

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