Sahitya : हिन्दी के छायावाद में स्वच्छन्दतावाद का वर्णन करें ।



       


 Hindi Sahitya :  स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म का प्रवर्तन अंग्रेजी में वर्ड्सवर्थ एवं कॉलरिज  के काव्य-संग्रह लिरिकल बैलेड्स (Lyrical Ballads) के प्रकाशन की तिथि सन् 1978 से माना गया है। 


इसके प्रमुख कवि वर्ड्सवर्थ, शैली, कीट्स, बायरन, काउपर आदि हैं, जिन्होंने प्राचीन काव्यशास्त्र की पद्धतियों, समाज की रूढ़िवादी दृष्टिकोण  मान्यताओं का विरोध करते हुए सरल स्वाभाविक काव्य-पद्धति, स्वच्छन्द वैयक्तिक प्रेम मूलक दृष्टिकोण एवं व्यापक मानववाद की प्रतिष्ठा की । 


जिन्होंने वैयक्तिक अनुभूतियों का प्रकाशन सुन्दर, मधुर मधुर गीतियों में निःसंकोच रूप से किया। 


उन्होंने सौन्दर्य के स्थूल उपकरणों के स्थान पर उसके सूक्ष्म गुणों तथा प्रकृति के चेतन रूप को महत्त्व दिया है। किन्तु अतिवैयक्तिकता, स्वच्छन्दता एवं कोमल मधुर अनुभूतियों का परिणाम जीवन में सुखद नहीं होता।



 इस प्रकार के व्यक्ति अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र के साथ समझौता कर पाने में असमर्थ रहते हैं, उनके मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाती हैं जिनका सामना न करने के कारण वे असफल, निराशावादी या रहस्यवादी हो जाते हैं।



 छायावादी कवियों की परिस्थितियाँ और उनका दृष्टिकोण बहुत कुछ स्वच्छन्दतावादी कवियों से मिलता-जुलता है। अतः उनसे प्रेरणा एवं प्रभाक ग्रहण करना स्वाभाविक था।


यही कारण है कि अंग्रेजी के स्वच्छन्दतावाद की प्रायः सभी प्रमुख प्रवृत्तियाँ प्राचीन रूढ़ियों के प्रति विद्रोह, व्यापक मानववाद, वैयक्तिक प्रेम की अभिव्यंजना, रहस्यात्मकता का आभास, सौन्दर्य के सूक्ष्7 गुणों की पूजा, प्रकृति में चेतन का आरोप, गीति शैली आदि-हिन्दी के छायावाद में समान रूप से मिलती है। 



अंग्रेजी के स्वच्छन्दतावाद से बंगला के कवि पहले ही से प्रभावित हो चुके थे। अतः हिन्दी के कवियों को भी ऐसा करने में कोई विशेष संकोच नहीं हुआ।



अंग्रेजी के स्वच्छन्दतावाद से हिन्दी के छायावाद की गहरी समानता को देखते हुए कुछ आलोचकों ने इसे रोमांटिसिज्म का ही हिन्दी संस्करण कहा था।


 इसमें संदेह नह कि छायावाद मूलतः रोमानी कविता है और दोनों की परिस्थितियों में भी जागरण औन कुण्ठा का मिश्रण है। 



फिर भी यह कैसे भुलाया जा सकता है कि छायावाद एक सर्वधा भिन्न देश और काल की सृष्टि है। जहाँ छायावाद के पीछे असफल सत्याग्रह था, 


वह रोमांटिक काव्य के पीछे फ्रांस का सफल विद्रोह था, जिसमें जनता की विजयिनी सत्ता समस्त जागृत देशों में एक नवीन आत्म-विश्वास की लहर दौड़ा दी थी। 


फलस्वरूप वह के रोमानी काव्य का आधार अपेक्षाकृत अधिक निश्चित और बेस था, उसकी दुनिया अधिक मूर्त थी, उसकी आशा और स्वप्न अधिक निश्चित और स्पष्ट थे, उनकी अनुभूति अधिक तीक्ष्ण थी। छायावाद की अपेक्षा वह निश्चित ही कम अन्तर्मुखी एवं वायवी था। 

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